मौसम / सूर्य उत्तरायण; लेकिन सर्दी का रिवर्स गियर लगा, एक महीने ऐसा ही मौसम रहने के आसार

सर्दी ने फिर से रिवर्स गियर लगा दिया है। ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के बाद पारे में बढ़ोतरी होती है। मकर संक्रांति पर जब सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं तो ठंड कम हो जाती है और तापमान में बढ़ोतरी होने लगती है। लेकिन, इस बार ठीक उलटी स्थिति बन रही है। ठंड फिर से अपना असर दिखा रही है। पूरे प्रदेश में हाड़कंपा देने वाली सर्दी का दौर जारी है। एक महीने तक ऐसा ही मौसम रहने के आसार हैं। 



मौसम विभाग के अनुसार, इस तरह का मौसम रहने की दो वजहें सामने आ रही हैं। उत्तर और उत्तरपूर्व भारत में कड़ाके की ठंड पड़ने की एक वजह वेस्टर्न डिस्टरबेंस का लगातार पैदा होना भी है। ये मध्यम से लेकर तीव्र गति तक रहा है। उत्तर पश्चिम की तरफ बहने वाली हवा का स्तर भी नीचे रहा है। इसका असर पूरे देश पर पड़ा है और मध्य प्रदेश में भी ठंड बढ़ी है। दूसरी वजह इस बार पाकिस्तान और भारत के बड़े भूभाग में नीचले स्तर पर बने घने बादलों ने सूर्य की किरणों को ढंक रखा है। ये स्थिति लगातार बनी हुई है। इसकी वजह से भी तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। दिसंबर-जनवरी में धुंध, कोहरा और बारिश की वजह से भी ठंड बढ़ी है। 


हर साल बदलती रहती हैं स्थितियां


मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह की सर्दी पड़ रही है, उसे असामान्य नहीं कहा जा सकता है। आमतौर पर उत्तर और उत्तर पूर्व भारत में पश्चिमी हिस्से और वेस्टर्न डिस्टरबेंस की वजह से सर्द हवा आती है। इन इलाकों में सर्दी इस बात पर भी निर्भर करती है कि जम्मू कश्मीर, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश जैसे सटते इलाकों में कितनी बर्फबारी हुई है। ये सारी स्थितियां हर साल बदलती रहती हैं, इसी के हिसाब से सर्दी कम या ज्यादा भी होती रहती है। 


ठंड और कड़ाके की ठंड के पैमाने तय


ठंड और कड़ाके की ठंड तय करने के लिए मौसम विभाग ने कुछ पैमाने तय कर रखे हैं। अगर दिन में अधिकतम तापमान, सामान्य तापमान से 4.5 डिग्री सेल्सियस तक नीचे रहता है, तो ऐसे दिन को सर्द दिन कहते हैं। उसी तरह से अगर दिन का अधिकतम तापमान, सामान्य तापमान से 6.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक रहता है तो इसे बहुत अधिक सर्दी पड़ना कहते हैं। वहीं अगर अधिकतम तापमान, सामान्य तापमान से 7 से 12 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है तो इसे कड़ाके की ठंड पड़ना कहते हैं।


कड़ाके की ठंड की असल वजह क्या है
सर्दी ज्यादा पड़ने की असल वजह है क्लाईमेट चेंज। क्लाईमेट चेंज की वजह से दुनियाभर में ज्यादा सर्दी भी पड़ रही है और ज्यादा गर्मी भी। इसी के चलते मध्य प्रदेश सहित देश में कई स्थानों पर अति बारिश भी दर्ज की गई है। 


क्‍या है कोहरा?
जब आर्द्र हवा ऊपर उठकर ठंडी होती है तब जलवाष्प संघनित होकर जल की सूक्ष्म बूंदें बनाती है। कभी-कभी अनुकूल परिस्थितियों में हवा के बिना ऊपर उठे ही जलवाष्प जल की नन्हीं बूंदों में बदल जाती है तब हम इसे कोहरा कहते हैं। तकनीकी रूप से बूंदों के रूप में संघनित जलवाष्प के बादल को कोहरा कहा जाता है। यह वायुमंडल में जमीन की सतह के थोड़ा ऊपर ही फैला रहता है। किसी घने कोहरे में दृश्यता एक किमी से भी कम हो जाती है। इससे अधिक दूरी पर स्थिति चीजें धुंधली दिखाई पड़ने लगती हैं।


कैसे बनता है कोहरा?
सापेक्षिक आ‌र्द्रता शत प्रतिशत होने पर हवा में जलवाष्प की मात्रा स्थिर हो जाती है। इससे अतिरिक्त जलवाष्प के शामिल होने से या तापमान के कम होने से संघनन शुरू हो जाता है। जलवाष्प से संघनित छोटी पानी की बूंदे वायुमंडल में कोहरे के रूप में फैल जाती हैं।


धुंध
जब कोहरे का धुएं के साथ मिश्रण होता है तो उसे धुंध (स्‍मॉग) कहते हैं। कुहासा या धुंध भी एक तरह का कोहरा ही होता है बस दृश्‍यता का अंतर होता है। यदि दृश्‍यता की सीमा एक किमी या इससे कम हो तो उसे कुहासा या धुंध कहते हैं।


कोहरा और कुहासा में अंतर


कोहरा और कुहासा दोनों हवा के निलंबित कणों पर जल की सूक्ष्म बूंदों से बने होते हैं। इनमें जल की सूक्ष्म बूंदों के घनत्व के कारण अंतर होता है। कुहासे की तुलना में कोहरे में जल की सूक्ष्म बूंदें अधिक होती हैं। कोहरे की एक परिभाषा के अनुसार कोहरे में दृश्यता सीमा 1,000 मीटर से कम रह जाती है। यह सीमा हवाई यातायात व्यवस्था के लिए उचित है लेकिन आम जनता और वाहनों के लिए दृश्यता की 200 मीटर अधिकतम सीमा अधिक महत्वपूर्ण है। दृश्यता के 50 मीटर के कम हो जाने पर यातायात संबंधी अनेक अवरोध उत्पन्न होते हैं।


ड्यू प्वाइंट
तापमान की वह अवस्था जिस पर हवा में मौजूद जल वाष्प संतृप्त होकर संघनित होना शुरू करती है। हवा में जलवाष्प की कुछ मात्रा मौजूद रहती है जिसे आ‌र्द्रता या नमी कहा जाता है। हवा में जलवाष्प की यह मात्रा ताप और वायुदाब पर निर्भर करती है। एक निश्चित वायुदाब और ताप पर हवा में मौजूद जलवाष्प की मात्रा निर्धारित होती है।



अन्य प्रभाव
केवल आ‌र्द्रता, ताप और दाब ही कोहरे के निर्माण के लिए काफी नहीं होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि गैस से द्रव में बदलने के लिए पानी को गैसरहित सतह की जरूरत होती है। और यह सतह इनको मिलती है पानी के एक बूंद के सौवें भाग से। इन शूक्ष्म हिस्सों को संघनन न्यूक्लियाई या क्लाउड सीड कहते हैं। धूल मिट्टी, एरोसाल और तमाम प्रदूषक तत्व मिलकर संघनन न्यूक्लियाई या क्लाउड सीड का निर्माण करते हैं। यदि वायुमंडल में ये शूक्ष्म कण बड़ी संख्या में मौजूद होते हैं तो सापेक्षिक आ‌र्द्रता 100 फीसदी से कम होने के बावजूद जलवाष्प का संघनन होना शुरू हो जाता है।



कैसे होता है हिमपात?


कोहरे में उपस्थित पानी के कणों के कारण आर-पार देखना मुश्किल हो जाता है। जब यह प्रक्रिया खूब ठण्डे पहाड़ी इलाकों में होती है तब पानी की बूंदे जमकर बर्फ के नन्हे क्रिस्टल्स में बदल जाती हैं। इसी को हम 'हिमपात' अथवा बर्फ गिरने के नाम से जानते है।


उत्तर भारत में कोहरे की चादर


दिल्ली, उत्तरी हरियाणा, दक्षिणी पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार देश के सबसे कोहरा प्रभावित क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में प्रदूषण, भू प्रयोग तरीके और कोहरे की आवृत्ति में सीधा संबंध स्पष्ट दिखाई देता है। दिल्ली जैसे शहरी परिवेश में हवा के अंदर भारी मात्रा में प्रदूषक तत्व संघनन के बाद जलवाष्प को कोहरा निर्माण के लिए प्रचुर सतह मुहैया कराते हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों में खेतों की सिंचाई कोहरे के लिए जरूरत से ज्यादा नमी उपलब्ध कराती है। भौगोलिक और मौसमीय दशाओं के अलावा इलाके में भारी प्रदूषण कोहरे और धुंध के लिए सहायक साबित होता है।